Prashasnik Kona : प्रशासनिक कोना: साहब के ड्राज के वजन की आखिर क्या है असलियत?? सांसद- विधायक को कैसे भूल रहे सब इंजीनियर??? एक थाना प्रभारी की तमन्ना किस वजह रह गई अधूरी???? विस्तार से पढ़िए हमारे चर्चित कॉलम प्रशासनिक कोना में……
Prashasnik Kona: Administrative Corner: What is the reality of the weight of sir's drag??

साहब का ड्राज के वजन की चर्चा क्यों?
जमीन से जुड़े एक विभाग के साहब के ड्राज के वजन की चर्चा इन दिनों जमकर सुर्खियां बटोर रही है। दो नंबर की हैसियत रखने वाले इन साहब के बारे में कहा जाता है कि रोजाना शाम तक इनका कलेक्शन लाखों में पहुंच जाता है। इस ड्राज के बारे में किसी को पता न चले इसलिए इस विभाग में आज तक कैमरे तक नहीं लगाए गए हैं। जबकि इस विभाग से लगे सभी विभाग सीसीटीवी की जद में नजर आते हैं। यहां हर दिन जमीन से जुड़े मामले में आधा सैकड़ा से अधिक लोगों के साथ परदाताओं का भी आना जाना लगा रहता है। इसके बावजूद सीसीटीवी नहीं लगाने के राज की खूब चर्चा हो रही है।
खबर तो यह भी है कि बड़े साहब को भी इनके ड्राज के अलावा सीसीटीवी न लगाने पर कुछ लोगों ने आपत्ति जताई है। साहब के अवकाश से आने के बाद दो नंबर की हैसियत रखने वाले इन साहब पर नजर रखकर असलियत सामने लाने के प्रयास किए जाएंगे। चर्चा यह भी है कि कुछ दिनों से इन साहब के ड्राज की चर्चा विभाग से निकलकर शहर के चौक चौराहों पर हो रही है। लोगों यह समझने के लिए आतुर और बेताब है कि आखिर साहब के ड्राज का राज क्या है?
सांसद-विधायक को भूले सब इंजीनियर
एक प्रमुख नपा में सब इंजीनियर के जिम्मे कई सारे काम सौंपने का असर अब धरातल पर दिखाई दे रहा है। यह सब इंजीनियर साहब एक लीडिंग मीडिया के मित्र पत्रकार को खबरें परोसकर पुराने को नया बनाने में मदद कर रहे हैं। नपा का नया प्रोजेक्ट या काम स्वीकृत हुआ नहीं और सांसद-विधायक के साथ नपा अध्यक्ष के योगदान का कोई हवाला या उल्लेख नहीं रहता है।
अलबत्ता सब इंजीनियर अपने वर्जन से पूरा क्रेडिट ले रहे हैं। कभी-कभी साइड रोल में सीएमओ का वर्जन लगाकर मामला बैलेंस करने का प्रयास कर रहे हैं। सीएमओ को बैलेंस कर चलने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि उन्हें एक के बाद एक जिम्मेदारियों से नवाजा जा रहा है। जिनके पर कतरे गए हैं, उन लोगों ने सब इंजीनियर के खिलाफ अंदर ही अंदर मोर्चा खोल लिया है।
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थाना प्रभारी की तमन्ना अधूरी
एक थाना प्रभारी की तमन्ना थी कि उन्हें एक मर्तबा एक उदगम नगरी का थाना प्रभारी बनाया जाए। जब-जब वे यह इच्छा जाहिर कर थाने में पदस्थापना के लिए जोर लगाते हैं तो उनका कोई न कोई खेल बिगाड़ दे रहा है। थाना प्रभारी के बारे में कहा जाता है कि सबसे पहले सांईखेड़ा में पदस्थ रहने के दौरान मुलताई जैसे प्रमुख थाने में जाने के लिए प्रयास किए तो उन्हें बीजादेही भेज दिया गया, फिर गंज में रहते हुए प्रयास किए तो उन्हें दूसरी जगह भेज दिया गया।
यहां पर भी प्रयास के बावजूद उन्हें उम्मीद थी कि बदलाव होगा तो मुलताई में थानेदारी करने का मौका मिलेगा, लेकिन पुलिस विभाग में हालिया तबादले ने फिर खेल पलट गया और साहब के अरमान आंसुओं में बह गए। इन थानेदार के बारे में कहा जाता है कि कुछ बातें छोड़ दे तो जिले में इनकी थानेदारी काफी अच्छी और तालमेल वाली कही जा सकती है।