Betul News: 20 दिन में दूसरी खदान दुर्घटना से दहशत में कोयला कर्मियों के परिवार
Betul News: Families of coal workers in panic due to second mine accident in 20 days

घायल मनोज का एलेक्सिस नागपुर अस्पताल में चल रहा है इलाज
Betul News: सारनी (कालीदास चौरासे)। एशिया की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली भूमिगत खदानों में इन दिनों बढ़ रहे हादसों ने वेस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड ही नहीं, बल्कि पूरे कोल इंडिया का ध्यान आकषर्ण किया है। दरअसल चाइना के बाद सबसे अच्छा आरएमआर डब्ल्यूसीएल के पाथाखेड़ा क्षेत्र का माना जाता है। यहां फिलहाल तीन भूमिगत खदानों का संचालन हो रहा है। जिसमें तवा-1, तवा-टू और छतरपुर – 1 शामिल है। बताया जा रहा है कि यह तीनों खदानें जमीनी सतह से लगभग 3 से 5 किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली है। सुरक्षित कोयला उत्पादन के लिए यह खदानें पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
कई बार इन खदानों को सुरक्षित कोयला उत्पादन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। बावजूद इसके कोयला उत्पादन कहे जाने वाले महीने में एका एक खदान दुर्घटना बढ़ने से कोयला कर्मियों के परिवार और कंपनी में हड़कंप मच गया है। बढ़ रहे खदान हादसे की वजह ही है कि पाथाखेड़ा क्षेत्र की मेजबानी में होने वाले वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के सुरक्षा कार्यक्रम भी रद्द कर दिए गए हैं। जबकि इस सुरक्षा कार्यक्रम को लेकर महीनों से पाथाखेड़ा क्षेत्र में तैयारी चल रही थी। बताया जा रहा है कि यूडीएम ऑपरेटर मनोज 52 लेवल नॉर्थ सेक्शन में बुधवार को घायल हो गया। जिसे आनन फानन में कंपनी द्वारा प्राथमिक उपचार के बाद नागपुर रेफर कर दिया। जहां घायल कोल कर्मी को फिलहाल ऑब्जर्वेशन में रखा है। जबकि गुरुवार या शुक्रवार को ऑपरेशन करना तय किया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार घायल कोल कर्मी की हालत में सुधार है।
20 अप्रैल 1986 को पहली, 6 मार्च 2025 को हुई दूसरी बड़ी दुर्घटना
डब्ल्यूसीएल पाथाखेड़ा के 7 दशक के इतिहास में 6 मार्च 2025 को दूसरी सबसे बड़ी दुर्घटना हुई। जिसमें तीन कोल कर्मियों की (रूफफाल) चट्टान के नीचे दबने से मौत हो गई। इससे पहले पाथाखेड़ा क्षेत्र में पहली सबसे बड़ी खदान दुर्घटना 20 अप्रैल 1986 को हुई थी। सतपुड़ा 1 खदान में हुई इस दुर्घटना से पूरा कोल इंडिया सहम गया था। इस हादसे में 4 कोयला कर्मी खदान में दब गए थे। जिनमें राम गहन अंसारी, गणेश, पंडरी और बली शामिल है। घटना के कुछ दिनों तक धरना, प्रदर्शन, आंदोलन हुआ। जांच हुई। खदान में शहीद स्मारक बना, लेकिन हादसे से कोई सबक नहीं लिया। जिसके चलते कोल कर्मियों के परिजनों को अपनों को खोना पड़ रहा है।
1964 से हो रहा है भूमिगत खदान का संचालन
पाथाखेड़ा क्षेत्र में सन 1964 से भूमिगत कोयला खदान का संचालन हो रहा है। मदर माइन कहे जाने वाली पीके 1 पहली खदान है। इसका शुभारंभ 16 मई 1964 को हुआ था। इसके तीन साल बाद 1967 में पीके खदान खुली। इसके बाद एक-एक कर 2004 से 2006 तक पाथाखेड़ा क्षेत्र में 9 कोयला खदाने खुली। लेकिन भूमिगत खदान में कोयला खत्म होने पर अब तक 7 खदानें बंद हो गई। जिसमें पीके1, पीके2, सतपुड़ा1 सतपुड़ा टू, सारनी और शोभापुर और छतरपुर टू माइन शामिल है। इसमें खास बात यह है 10 में से 6 खदानें बीते डेढ़ दशक यानी कि साल 2008 से 2024 के बीच बंद हुई है। इन लगभग सभी खदानों में भीषण हादसे हुए हैं। जिसमें कई कर्मियों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। लेकिन इस बदलते आधुनिक युग में खदान दुर्घटना होना कोल इंडिया के लिए चिंता का कारण है।