Politics: राजनीतिक हलचल: आखिर नारायणास्त्र किसने चलाया?? स्पर्धा का नाम बदलने पर आयोजकों ने कैसे दिया तगड़ा झटका??? आखिर इस विधानसभा क्षेत्र में अफसर क्यों नहीं रहना चाहते???? विस्तार से पढ़िए हमारे चर्चित कॉलम राजनीतिक हलचल में……
Politics: Political stir: Who fired the Narayanastra?? How did the organizers give a big blow when the name of the competition was changed???

नारायणास्त्र आखिर किसने चलाया
एक आरक्षित विधानसभा में बहुसंख्यक समाज को चुनौती देने वाला नारायणास्त्र आखिर चलाया किसने? यह यक्ष प्रश्न सबके सामने है। कहा जा रहा है कि विपक्षी पार्टी के एक पूर्व माननीय के फस्ट्रेशन की इस में बड़ी भूमिका है। वहीं एक सत्तारूढ़ पार्टी के एक क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ नेता का इगो का मसला भी जुड़ा है। हालांकि इसका क्रेडिट सत्ता दल से बाहर किए जा चुके भारी भरकम पदाधिकारी लेने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बावजूद जानकार मानते हैं कि वह महज मोहरा भर है।
असल सूत्रधार सत्तारूढ़ पार्टी के जनता द्वारा चुने गए एक प्रमुख नेता ही है। हालांकि इस मामले के रणनीतिकार की चर्चा अलग-अलग की जा रही है, लेकिन असलियत सामने आने के बाद नारायणास्त्र किसने चलाया यह सबके सामने आ गया है। इसको लेकर कुछ दिनों बाद वास्तविकता भी सामने आने की चर्चा चल रही है।
स्पर्धा का नाम बदलने पर आयोजकों का तगड़ा झटका
एक बड़े क्रिकेट टूर्नामेंट में समिति ने अपनी पूरी ताकत लगाकर आयोजन को सफल बनाने की रणनीति में जुटी है। पहले स्पर्धा का नाम दूसरा था, लेकिन किसी की आपत्ति के बाद नाम बदल दिया गया।
पिछले दिनों जब प्रतियोगिता का शुभारंभ हुआ तो चर्चा जोरो पर रही कि किसकी वजह से नाम परिवर्तन हुआ। यह बात पूरे राजनैतिक हल्के में चटकारे हल्के में कही जा रही है। जिस तरह आयोजकों ने प्रतियोगिता में सामंजस्य स्थापित कर सत्तारूढ़ और विपक्षी पार्टी के नेताओं को आमंत्रित कर एक तीर से कई निशाने साधे है। इसके लिए आयोजन समिति को सभी दूर से बधाइयां मिल रही है। लोग कह रहे हैं कि खेल में राजनीति कभी नहीं आने देना चाहिए।
अफसर नहीं रहना चाहते इस जगह!
एक महिला जनप्रतिनिधि के अचानक किसी भी मामले में आग बबूला होने पर क्षेत्र में पदस्थ अफसर अब वहां रहना नहीं चाहते हैं। इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि छोटे-छोटे मामलों में यह जनप्रतिनिधि अफसरों को फटकार लगा रही है। कई अफसर ऐसे हैं जो ईमानदारी से अपनी नौकरी कर रहे हैं, लेकिन छोटे-छोटे मामलों में मैडम मीन-मेख निकालकर फटकार लगाने से नहीं चुक रही।
कुछ अधिकारी ऐसे हैं जिनकी नौकरी में एक दाग भी नहीं लगा, वे भी मैडम की नाराजगी का शिकार बनते जा रहे हैं। चूंकि मैडम पहली मर्तबा जनता द्वारा चुनी गई है, इसलिए सीधे मुखिया तक शिकायत करने की चेतावनी देती है। उन्हें यह भी नहीं पता कि अफसर छोटा है या बड़ा? सीधे मुखिया से शिकायत करने पर अधिकारी बेचारे परेशान हो रहे हैं। चर्चा है कि मैडम की इस छवि की शिकायत भी कुछ अधिकारियों ने सत्तारूढ़ पार्टी के शीर्ष पदाधिकारियों को की है।