Betul Samachar: स्वच्छता मिशन का काला सच: जब कार्य ही नहीं हुए तो कैसे जारी हुई सीसी?

Betul News: Video: The dark truth of Swachhta Mission: How was CC issued when no work was done?

सीईओ के अनुमोदन पर उठ रहे सवाल, जांच ईमानदारी से हो तो करोड़ों के हेरफेर की सच्चाई आएगी सामने

Betul Samachar: बैतूल। चिचोली और भीमपुर जनपद में केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत करोड़ों के हेरफेर के तार लम्बे खींचते नजर आ रहे हैं। भले ही जनपद सीइओ को क्लीन चिट दे दी गई हो, लेकिन पुलिस में कई गई एफआईआर बहुत कुछ सच्चाई बयां कर रही है। भुगतान के पूर्व ऐसे कार्यों की सीसी (कार्य पूर्णता प्रमाण पत्र) जारी कर दिए गए, जिनका जमीनी हकीकत से दूर तक कोई नाता ही नहीं था। नियम के मुताबिक सीसी जारी होने के बाद इसका अनुमोदन भी सीईओ को ही करना होता है। अनुमोदन के पश्चात एक निश्चित प्रक्रिया होने के बाद ही संबन्धित के बैंक खातों में राशि ट्रांसफर होती है, लेकिन इस मामले में घोटाले का पूरा ठीकरा ब्लाक समन्वयक राजेन्द्र परिहार और अन्य दो कम्प्यूटर ऑपरेटरों पर फोड़ दिया गया। एफआईआर के मजमून का सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाए तो प्रतीत होता है कि घोटाले के तार केवल चिचोली,भीमपुर या बैतूल तक नहीं बल्कि इसके बाहर भी जुड़े हो सकते हैं।

एफआईआर की तीन लाइन कह रही पूरी कहानी

स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत कुल 13 करोड़ 21 लाख 77 हजार 220 रुपए के गबन का मामला सामने आया है। यह भुगतान ऐसे कार्यों के एवज में किया गया, जो किए ही नहीं गए थे। जिन लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। उन्हें पूरी तरह दोषी बताया जा रहा है, लेकिन भुगतान की जो प्रक्रिया है। उसके मुताबिक ऐसा कहीं से कहीं तक सम्भव नहीं है कि सम्बन्धित अधिकारी को इसका पता न हो। भुगतान की प्रक्रिया को लेकर एफआईआर में स्पष्ट उल्लेख है कि भुगतान के लिए पीएफएमएस पोर्टल पर ब्लाक समन्वयक भुगतान का संपूर्ण परीक्षण एवं कार्य का भौतिक सत्यापन कर कार्य पूर्णता प्रमाण पत्र यानी सीसी के आधार पर सीईओ जनपद से अनुमोदन करवाता है।

इसके पश्चात क्रिएटर लॉगिन से व्हाउचर जनरेट किए जाते हैं। इसके बाद एप्रूवल लॉगिन पर प्राप्त पीपीए में डिजिटल सिग्नेचर लगाकर भुगतान ओके किया जाता है। इसके उपरांत राज्य नोड्ल एकाउंट से संबंधित के खाते में भुगतान होता है। सवाल यह खड़ा हो रहा है कि कार्य पूर्णता प्रमाण पत्र के आधार पर सीईओ अनुमोदन कर रहे हैं। तो वह कैसे इससे इनकार कर सकते हैं कि घोटाले की उनको भनक तक नहीं थी। सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि सम्पूर्ण प्रक्रिया के पश्चात जब अंतिम भुगतान राज्य नोडल एकाउंट के जरिए किया जाता है तो क्या उच्च अधिकारी आंखे मूंदकर भुगतान करते रहे। प्रशासनिक हल्कों में भले ही इस घोटाले ने हड़कंप मचा रखा हो, लेकिन जानकारों का मानना है कि यदि घोटाले की सही तरीके से जांच हो तो कई बड़ी मछलियां कानून के जाल में फंसी नजर आ सकती हैं।

स्कूलों में बने शौचालयों में भी भ्रष्टाचार की आ रही बू

स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत स्कूलों में भी शौचालय निर्माण को प्राथमिकता प्रदान की गई है। ताकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे स्वच्छता के प्रति जागरूक हो सकें। सूत्र बताते हैं कि जिले के सरकारी स्कूलों में भी शौचालय बनाने के लिए करोड़ों का बजट खर्च किया जा रहा है। कुछ पूर्ण हो चुके हैं तो कुछ अधूरे पड़े हुए हैं। सूत्रों का दावा है कि ठेकेदारों को राशि का भुगतान करने के लिए कमीशन खोरी को ढाल बनाकर अपनी तिजोरी भी भरने के प्रयास हो रहे हैं। संवेदनशील कलेक्टर अपना ध्यान आकर्षण करें तो यहां भी बड़ी वित्तीय अनियमितता सामने आ सकती है। सीईओ को क्लीन चिट दिए जाने के मामले को लेकर जब कलेक्टर नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी से उनके मोबाइल 7692970993 पर चर्चा किए जाने के लिए संपर्क किया तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।

Ankit Suryawanshi

मैं www.snewstimes.com का एडिटर हूं। मैं 2021 से लगातार ऑनलाइन न्यूज पोर्टल पर काम कर रहा हूं। मुझे कई बड़ी वेबसाइट पर कंटेंट लिखकर गूगल पर रैंक कराए हैं। मैने 2021 में सबसे पहले khabarwani.com, फिर betulupdate.com, sanjhveer.com, taptidarshan.com, betulvarta.com, yatharthyoddha.com पर काम करने का अनुभव प्राप्त हैं।इसके अलावा मैं 2012 से पत्रकारिता/मीडिया से जुड़ा हुआ हूं। प्रदेश टुडे के बाद लोकमत समाचार में लगभग 6 साल सेवाएं दीं। इसके साथ ही बैतूल जिले के खबरवानी, प्रादेशिक जनमत के लिए काम किया।

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