Betul Satpuda Jangle: किताबों में रह गए सतपुड़ा के घने जंगल!
42 साल में 1.19 लाख हेक्टेयर वन भूमि उजड़ी, 1510 करोड़ खर्च फिर भी हरियाली नदारद

Betul Satpuda Jangle : बैतूल। हमने बचपन में किताबों में पढ़ा था, सतपुड़ा के घने जंगल, जहां पक्षियों की चहचहाहट और पेड़ों की छांव से जीवन महकता था। लेकिन आज जब उसी सतपुड़ा की हकीकत देखी जाती है, तो सवाल उठता है कि वे घने जंगल आखिर गए कहां? पिछले 42 वर्षों में वन विभाग के रिकॉर्ड खुद बता रहे हैं कि 1.19 लाख हेक्टेयर वन भूमि उजड़ चुकी है।
विभाग ने जंगलों को फिर से बसाने के लिए 1510 करोड़ रुपये पौधारोपण पर और 90 करोड़ रुपये रख-रखाव पर खर्च किए, लेकिन नतीजा यह है कि जंगल आज भी खाली हैं। करीब 20 करोड़ पौधे लगाए गए, लेकिन इनमें से कितने जीवित हैं, इसकी कोई जानकारी नहीं दी जा रही। ऊपर से अवैध कटाई अब भी जारी है। जंगलों को बचाने के बजाय संबंधित अधिकारी और व्यवस्थाएं खुद जंगलों को उजाड़ने में सहायक बनती जा रही हैं।
बैतूल जिले समेत मध्यप्रदेश में जंगलों को बचाने और फिर से विकसित करने के लिए पिछले कई वर्षों में भारी-भरकम बजट खर्च किया गया, लेकिन परिणाम धरातल पर नहीं दिख रहे हैं। आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि जितना पैसा पेड़ों को उगाने और जंगलों को हरा-भरा बनाने के लिए खर्च हुआ, उसके अनुरूप न तो हरियाली बढ़ी और न ही अवैध कटाई पर लगाम लग पाई।
वन विभाग के दस्तावेजों के अनुसार वर्ष बैतूल जिले में 1980 से लेकर 2021-22 तक की अवधि में 119401 हेक्टेयर वन भूमि का उपयोग दूसरे कार्यों के लिए कर लिया गया। यह भूमि विभिन्न विकास परियोजनाओं, सड़क निर्माण, खनन और अन्य कार्यों के लिए उपयोग की गई। इसके चलते जो हरियाली बढ़नी थी, वह लगातार घटती चली गई।
Betul Satpuda Jangle : विभाग का 20 करोड़ पौधे का दावा झूठा
विभाग ने दावा किया कि इस अवधि में लगभग 20 करोड़ पौधे लगाए गए हैं। इन पौधों पर पौधारोपण की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत कुल 1510 करोड़ रुपये खर्च किए गए। इसके अलावा इन पौधों के रख-रखाव पर भी लगभग 90 करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन वन विभाग यह नहीं बता सका कि इन 20 करोड़ पौधों में से कितने अभी जीवित हैं और कितने पेड़ बन चुके हैं।
वन क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि यह हालात जंगलों को बचाने की इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाते हैं। अगर वास्तव में पौधारोपण ईमानदारी से होता और अवैध कटाई पर सख्त कार्यवाही होती, तो आज जिले के जंगलों में हरियाली होती।
ग्रामीण इलाकों के कई हिस्सों से लगातार शिकायतें मिल रही हैं कि बड़ी संख्या में पेड़ों की अवैध कटाई होती है, लेकिन वन अधिकारियों द्वारा कार्रवाई नहीं की जाती। कुछ स्थानों पर वन भूमि पर अतिक्रमण भी बढ़ा है, जहां खेती या निर्माण कार्य हो रहे हैं।
Betul Satpuda Jangle : क्या कहते हैं जानकार
बैतूल जिले में ही बड़े पैमाने पर वन संरक्षण योजनाओं के अंतर्गत काम हुए, लेकिन उनका प्रभाव जमीन पर नहीं दिखता। जंगल से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं कि यदि इतनी राशि सही तरीके से खर्च की जाती तो जिले के जंगलों की तस्वीर बदल सकती थी।
वन विभाग के कुछ सेवानिवृत्त अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पौधारोपण की रिपोर्टें अक्सर कागजों में बनाई जाती हैं और अधिकांश पौधे बिना सुरक्षा के लगाए जाते हैं, जो कुछ ही महीनों में सूख जाते हैं या मवेशी खा जाते हैं।।अब जब इस बात के दस्तावेजी प्रमाण सामने आ रहे हैं कि हजारों करोड़ की योजना के बावजूद जंगल घटते जा रहे हैं, तो यह सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर इतने बड़े खर्च का लाभ कहां गया? जवाबदेही किसकी है? और सबसे अहम बात यह कि क्या अब भी इस दिशा में सुधार के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे?
बैतूल जिले में 36 फीसद से अधिक क्षेत्र में है जंगल, उजड़ने से बचाने की है जरूरत
सतपुड़ा की पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बसे बैतूल जिले का कुल क्षेत्रफल 10043 वर्ग किमी. है और इसमें से 3663 किमी में वन क्षेत्र आच्छादित है। घने जंगलों के लिए प्रदेश में पहचाने जाने वाले बैतूल जिले में 1 वर्ग किमी में 156 लोग रहते हैं। हरियाली के कारण जिले में गर्मी के दिनों में तापमान जहां अधिक नहीं हो पाता है, वहीं मानसून को भी जंगल अपनी ओर खींचकर ले आते हैं। जिससे कभी सूखे जैसे हालात का सामना नहीं करना पड़ा है। पिछले एक दशक से जरूर जिले में जितनी तेजी से हरियाली समाप्त की जा रही है उसका 10 फीसद भी दोबारा लाने के लिए प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। पयरवरणविदो का कहना है कि कांक्रीट का जंगल उगाने की यही रफ्तार रही तो आने वाली पी़ढियां केवल किताबों में ही पढ़ पाएंगी। सतपुड़ा के घने जंगल, कभी ऊंघते अनमने से ।
Betul Satpuda Jangle : रोपे गए पौधों की तरफ पलट कर भी नहीं देखते
जिले में हर साल बारिश के मौसम में लोग, संस्थाएं, प्रशासन, सरकार, वनवासी, किसान और शहरी आबादी पौधरोपण के लिए जुटती जरूर है, लेकिन बारिश के बाद कोई उन रोपे गए पौधों की ओर पलटकर भी नहीं देखता है। यदि हम संकल्प लें, सरकार पौधों को पालने के लिए प्रोत्साहित करे तो हम कई पीढ़ियों तक जिले के 36 प्रतिशत भाग को जंगल से आच्छादित बनाए रख पाएंगे।
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य कर रहे लोगों का मानना है कि पहले गर्मी के दिनों में भी रात होते ही हल्की ठंडी हवाएं बहने लगती थीं, जो समृद्ध वन का प्रमाण था लेकिन अब धीरे-धीरे ठंडक कम हो रही है। हमारी नई पीढ़ी को अभी से इस दिशा में कार्य करना होगा।
पर्यावरण के लिए काम कर रहे लोगों, संस्थाओं का सहयोग करने की मानसिकता बनानी होगी, अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब जिले में वन क्षेत्र 36 प्रतिशत भाग से भी कम में रहेगा। इस संबंध में मुख्य वन संरक्षक वासु कनोजिया को उनके मो.9424790300 पर काल किया, लेकिन जिले से बाहर होने के कारण उनसे संपर्क नहीं हो पाया।