Mahakumbh 2025: महाकुंभ में दिखी बैतूल के कोरकू संस्कृति की झलक
Mahakumbh 2025: A glimpse of Korku culture of Betul seen in Mahakumbh

मध्यप्रदेश मंडप में आदिवासी लोककला ने मोहा मन, श्रद्धालु हुए मंत्रमुग्ध
Mahakumbh 2025: बैतूल। प्रयागराज महाकुंभ में मप्र मंडप के सेक्टर सात में 31 जनवरी से 2 फरवरी तक बैतूल जिले की कोरकू जनजातीय संस्कृति के पारंपरिक गडली-सुसुन नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति हुई। तीन दिवसीय इस आयोजन में श्रद्धालुओं ने आदिवासी लोककला की इस अनुपम छटा को सराहा। बैतूल जिले से आई सांस्कृतिक टीम के नेतृत्वकर्ता कोरकू संस्कृति गडली-सुसुन नृत्य विशेषज्ञ महादेव बेठे कोरकू रहे, जबकि आयोजन में प्रमुख सहयोग और मार्गदर्शन प्रसिद्ध रंगमंच कलाकार सोनू कुशवाहा का रहा।
संस्कृति मंत्रालय भोपाल के निर्देशन में आयोजित इस प्रस्तुति के लिए मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय कला अकादमी के निदेशक डॉ. धर्मेंद्र पारे के नेतृत्व में विशेष रूप से कोरकू संस्कृति को बढ़ावा देने की पहल की गई। महादेव बेठे कोरकू ने कहा कि 144 वर्षों बाद होने वाले इस ऐतिहासिक महाकुंभ में मध्यप्रदेश मंडप के मंच पर बैतूल की कोरकू जनजातीय संस्कृति को प्रस्तुत करना एक गौरवशाली क्षण है। उन्होंने कहा कि कोरकू संस्कृति और नृत्य को संरक्षित रखना और बढ़ावा देना उनके जीवन का ध्येय है।
कोरकू संस्कृति का पारंपरिक नृत्य गडली-सुसुन
कोरकू जनजातीय समुदाय के पारंपरिक नृत्य गडली-सुसुन में पुरुषों द्वारा किए जाने वाले नृत्य को ‘सुसुनÓ और महिलाओं द्वारा किए जाने वाले नृत्य को ‘गडलीÓ कहा जाता है। यह नृत्य एकल नहीं, बल्कि सामूहिक रूप से किया जाता है। खासकर धार्मिक अनुष्ठानों, शुभ अवसरों, दशहरा, शिवरात्रि, और अन्य प्रमुख त्योहारों पर इस नृत्य का आयोजन किया जाता है।
पुरुष कलाकार ढोलक और बांसुरी बजाते हैं, जबकि महिलाएं चिटकोरी नामक वाद्य यंत्र बजाती हैं, जिसमें घुंघरू लगे होते हैं। डॉ. धर्मेंद्र पारे के प्रयासों से कोरकू जनजातीय संस्कृति को मध्यप्रदेश में एक विशेष पहचान मिली है और इसे संरक्षित करने की दिशा में ठोस प्रयास किए जा रहे हैं। संस्कृति मंत्रालय भोपाल के मार्गदर्शन में इस बार प्रयागराज महाकुंभ में भी कोरकू संस्कृति की झलक देखने को मिली, जिसे श्रद्धालुओं ने खूब सराहा।