Prashashnik Kona: प्रशासनिक कोना: बड़बोले साहब ने क्या बोल दिया, जिससे अवैध गतिविधियों की बाढ़ आ गई?? आर्थिक राजधानी में कौनसे साहब के आलीशान बंगले की हो रही खूब चर्चा??? एक सरकारी जमीन बेचने की फ़ाइल आखिर किस वजह अटकी???? विस्तार से पढ़िए हमारे चर्चित कॉलम प्रशासनिक कोना में……
Prashashnik Kona: Administrative Corner: What did the brash sir say, due to which there was a flood of illegal activities??

बड़े साहब ने आखिर ये क्या कह दिया!
यूनिफॉर्म वाले 1 विभाग के बड़े साहब के मुंह से निकली बात इन दिनों उनके विभाग में कान लगाकर सुनी जा रहीं है। दरअसल साहब अपने एक मुंह लगे को मजाकिया लहजे में कह बैठे कि अब महीने, दो महीने बचे है। बस साहब के मुंह से यह बात सुनकर मुंह लगे ने आग की तरह फैला दी। इसके बाद तो अवैध गतिविधियों में लिप्त लोगों ने खुलेआम औऱ गांव- गांव, खेत- खेत दांव लगने लगे है।
इससे साहब और अब उनके दरबारियों की खूब मिट्टी पलीत हो रही है। वैसे साहब ने यह बात मजाकिया लहजे में कह दी थी, लेकिन उनके कुलीग ने इसे गम्भीरता से ले लिया और पूरे जिले में दनादन मचाकर बड़े साहब की परेशानी को दोगुना कर दिया है। साहब भी समझ नहीं पा रहे कि आखिर अब इस मामले में कैसे निपटा जाए, क्योंकि हालात यह हो गए 1 नहीं जिले में अब 2 दर्जन से अधिक स्थानों पर खुलेआम फड़ चल रही है।
जल्दी नए बंगले में दिखेंगे बॉस
प्रशासनिक अमले के बॉस कहे जाने वाले अफसर इन दिनों फील गुड महसूस कर रहे है। इस फीलगुड के पीछे चर्चा है कि उन्हें एक अदद और आलीशन बंगला मुहैया कराया जा रहा है। सुरापान महकमे के डॉक्टर साहब ने उनके लिए यह व्यवस्था की है।
कहा जा रहा हैं कि प्रदेश की आर्थिक राजधानी में डॉक्टर साहब ने बॉस के लिए यह जिम्मेदारी ली है। हालांकि जिस महकमे के साहब यह बंगला बनवा रहे है, इसमें उतना कमीशन नहीं मिला पाता है। इसके बावजूद आलीशान बंगला बनाने की बात राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में तेजी से फैल गई है। बताते चले कि यह साहब कुछ भी बक- बक कर भूल जाने के लिए जाने जाते है।
सरकारी जमीन की फाइल की जुगलबंदी
सरकारी जमीन बेचने की एक फ़ाइल इन दिनों तहसील मुख्यालय में केवल 2 अधिकारियों के बीच झूल रही है। पहले 1 बड़े साहब रिमार्क कर परिसर में बैठने वाले ठाड़े छोटे साहब के पास भेज देते हैं। छोटे साहब भी इसको टीप और खामियां बताकर वापस बड़े साहब के पास लौटा दे रहे। दो अधिकारियों में सामंजस्य न होने का ही नतीजा है कि यह फ़ाइल चकरघिन्नी बन गई है।
आरआई और पटवारी चाहकर भी इस मामले को आगे बढ़ाने के लिए कहने का साहस नहीं जुटा पा रहे है। यही कारण है कि सरकारी जमीन बेचने का मामला लम्बा खींचने के साथ दो अधिकारियों में तालमेल न होने से लटकते ही जा रहा है।