Betul Samachar: बैतूल की माटी के लाल ने दुनिया को किया अलविदा
Betul Samachar: Son of Betul's soil bids goodbye to the world

पूरी दुनिया में पोलर मेन के नाम से पहचाने जाने वाले प्रकाश खातरकर का निधन
Betul Samachar: बैतूल। मुलताई के एक छोटे से ग्राम धाबला में मजदूर परिवार में जन्मे प्रकाश खातरकर किसी तारीफ के मोहताज नहीं थे। अपने ज्ञान के बल पर पूरी दुनिया में बैतूल का नाम रोशन करने वाले पोलर मैन प्रकाश ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। कैंसर जैसी घातक बीमारी से लगातार दो साल तक लड़ने के बाद आखिर वह जिंदगी की जंग हार गए और महज 49 वर्ष की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। जिसने भी यह खबर सुनी दुख में डूब गया। दरअसल प्रकाश खातरकर एक ऐसी शख्सियत थे, जिनका नाम देश के जाने माने मिसाइल मैन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की भी जुबान पर था। स्व. खातरकर का अंतिम संस्कार मंगलवार दोपहर उनके गृह ग्राम धाबला में किया गया।
माइनस 90 डिग्री सेल्सियस के तापमान के बीच 1साल रहकर किया था अनुसंधान
डॉ. खातरकर उस समय सुर्खियों में आए थे, जब भारतीय वैज्ञानिक दल के साथ उन्होंने पूरा एक वर्ष अंटार्कटिका दक्षिण ध्रुव पर बिताया था। उन्होंने अपने अनुसंधानों से देश और दुनिया को बताया था कि माइनस 90 डिग्री सेल्सियस के तापमान के बीच , जहां हवाएं 300 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलती हैं । ऐसी बर्फीली तूफानी हवाओं के बीच पेंगुइन और पोलर बियर कैसे जीवित रह पाते हैं।
इस अनुसंधान के बाद ही उन्हें पोलर मैन के नाम से नवाजा गया था। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अंटार्कटिका कि इन कठिन परिस्थितियों को चुनौती देने वाले डॉ.प्रकाश ने एक दो दिन नहीं बल्कि पूरा एक वर्ष यहां बिताया और देश दुनिया के पटल पर अपनी अमीट छाप छोड़ने में कामयाबी हासिल की थी। कैंसर फाइटर हेमन्त बबलू दुबे बताते हैं कि कुछ सालों से डॉ. प्रकाश खातरकर आठनेर महाविद्यालय में अपनी सेवाएं दे रहे थे, लेकिन केंसर जैसी घातक बीमारी ने आज एक अनमोल हीरा हमसे छीन लिया। डॉ प्रकाश को करीब से जानने वाले सीए सुनील हीरानी ने बताया कि अत्यंत कठिन परिस्थियों में ज्ञान का भंडार हासिल करने वाले डॉ प्रकाश भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी बुलंदी का सितारा हमेशा आसमान पर चमकता नजर आएगा।
कठिन जीवन जीकर मुकाम किया था हासिल
डॉ. प्रकाश खातरकर ज्ञान के वो भंडार थे, जिसके कायल देश के मिसाइल मैन और राष्ट्रपति रह चुके स्व. डॉ एपीजे अब्दुल कलाम भी थे। बबलू दुबे बताते हैं कि अंटार्कटिका के अनुसंधान के बाद डॉ प्रकाश का नाम पूरी दुनिया में छा गया था। उस समय देश के राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम थे। उन्होंने दिल्ली आकाशवाणी के एक कार्यक्रम में डॉ प्रकाश की सराहना करते कहा था कि कठिन परिस्थियों के बीच डॉ प्रकाश ने जो मुकाम हासिल किया है, वह गर्व की बात है। मजदूर परिवार में जन्मे डॉ प्रकाश खातरकर ग्रामीण परिवेश से आते थे, एक समय हालात यह थे कि माता-पिता के मजदूरी करने के बाद भी सुबह शाम की रोटी का इंतजाम भी बमुश्किल हुआ करता था।
इन विकट परिस्थितियों से जूझकर डॉ प्रकाश ने अपनी अद्भुत क्षमताओं से दुनिया में मुकाम हासिल कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया था। इस शख्सियत ने आज दुनिया को दिखा दिया की प्रतिभाएं किसी की मोहताज नहीं होती है, लेकिन दु:ख इस बात का है कि एक बेहतरीन शख्सियत जीवन की जंग हार गई, लेकिन डॉ प्रकाश का नाम, ज्ञान और मेहनत हमेशा हमेशा जीवित रहेगी। यह वही शख्स है, जिसने पहली बार वाक अगेंस्ट केंसर यात्रा को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था और कैंसर से लड़ने का संदेश भी लोगों तक पहुंचाया था, लेकिन विडम्बना है कि आज वहीं शख्स कैंसर की जंग खुद हार गया। ऐसी शख्सियत के चरणों में सांझवीर टाईम्स परिवार श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।